गुरुवार, 26 मार्च 2009
शनिवार, 7 मार्च 2009
नारीसशाक्तिकरण कि वर्था
आज यादो कि गलियों में घूमते-घूमते कुछ दूर तक निकल गयी ,तभी राह में गुजरते हुवे वर्ष २००२ से मुलाकात हो गयी ,राह एक पर राही दो ,मैं व वर्ष २००२,बातो का यादो का सिल-सिला आगे बढने लगा,वह अपने समय के सामाजिकप्राणियो द्वारा किये कार्यो कि सफलता के किस्से सुनाता रहा, बातो ही बातो में घ्यान ही न रहा हाँ कब गोमती नदी के तट तक पंहुच गए मुझे भी वापस लौट चलने कि कोई जल्दी न थी उसकी बातो में रस लेने लगी ,तभी उसका स्वर कुछ बुझा-बुझा सा महसूस हुआ तो मेने पूर्ण संवेदना के भाव रखते हुए उसकी और देखा तो उसे भी अपनी बात पूर्ण करने का साहस हुआ वह कहने लगा .......अचानक समाज सुधारकों को नारियों कि भी सुध लेने कि याद आ गयी, तो नारी सशक्तिकरण के नाम ८ मार्च का दिन एलाट कर दिया, अब आगे क्या किया जाये कैसे नारियो कि प्रशंसा हासिल की जाये , यह सोच गोमती नदी के हनुमान सेतु व् मनकामनेश्वर मंदिर के करीब तट पर चार दिवसीय प्रदर्शनी लगाने कि योजना बना दी,प्रदर्शनी में स्टाल भी लगाव दिये पापड ,अचार,बड़ी-मुगोडी.हस्तशिल्प खिलोने ,कपडे दरी कालीन यानी कि घर ग्रहस्ती कि दुनिया को फिर रच दिया नारी को याद दिला दिया यही सब है हर जगह तेरे लिए ,उन आयोजको में से कुछ बुदिध्जीवी भी थेउन्हें नारी के दुखो के कारणों कि याद आई, सोचा तो उन्हें याद आया नशाखोरी का, जो उसके बेटे,भाई, पिता व पति, अपनी मोज मस्ती के लिए किया करते है और सहती है नारी बदले में उसकी आर्थिक तंगी, पारिवारिक विघटन, परिवार में संस्कारो कि होती हत्या और उसके उपरांत मिलाता है नारकीय जीवन नारी को पुरुस्कार रव्रूप भोगने को तो लगाव दिया एक स्टाल मद्यनिषेधविभाग से भी, पर हाय नारी तेरे भाग्य कि कैसी बिडम्बना इस प्रदर्शनी का कोई प्रचार-प्रसार न किया लोगो का इस और ध्यान जाये ऐसा कोई प्रयास भी नहीं किया गया, न ही इसे समाचार साधको ने भी अपने समाचार पत्रों में जगह दी, तब एक समाचार साधना रत महाशय से दूरभाष पर संपर्क कर पूछा कि उन्हें नाराजगी नारी से है या नारी सशक्तिकरण से जो आपने अपने दैनिकसमाचार पत्रों में जगह न दी थोडी सी, इसकेलिए झट दुसरे ही दिन अखबार में बड़ी सी खबर छाप कर अपने कर्तव्यो कि इति श्री कर ली उन महाशय ने फिर नारियो ने ही अपने परिचितों से मिलकर दूरभाष का प्रयोग कर इस प्रदर्शनी कि सूचना दी अंतिम दो दिन लोगो कि भीड़ उमड़ कर आयी लोगो से जानकारी मिली कि इस प्रदर्शनी के लगाने कि जगह कि सही जानकारी तक प्रसारित नहीं हुई इसलिए वे नहीं आ सके अब तक अबला तेरी यही कहानी,तेरी कदर शासन-प्रशासन ने भी इतनी सी जानी ,बात तो बहुत छोटी थी पर शायद उससे दिल को ठेस लग गयी यह सब सुन मेरा ह्रदय भी विकल हो गया मैंने वापसी कि राह थाम ली
गुरुवार, 12 जून 2008
शुक्रवार, 16 मई 2008
गुरुवार, 3 अप्रैल 2008
me dekhta hu chitr ko..apne divagant meetr ko..pash me hi geha tha..pariwar purit-sneh tha..bachche shabhi khushhal the..godam malamal the..phir ek din bigadee dasha..chadne laga dhan ka nasha..kuchh log bahakane lage..shukh marm shamjhane lage..jeevanviphal,bekar hai..madhyapan jeevan-shar hai..pariwar se katane laga..vah leek se hatane laga..nit baithake hone lagee..raate jahar bone lagee..ghar me dhuwa bharne laga..shukh chen sab harne laga..pratidin kalah badhne lagee..vish bel shir chadhne lagee..tan shukh kata ho gaya..dhan-man,yauvan kho gaya..ghar me bachee bash galeeya..titechashak ya yaleeya..avshesh the shigaret ke..ya bil bakaya sheth ke..sheeshiyo ke ambar the..sab band karobar the..bachche ashikshit rah gaye..shukh ke kile sab dhah gaye..shaman ghar ka bik gaya..sab kuchh adhar par tik gaya..phir ek din sab chhod kar..shanshar se muha modh kar..chir nid me vah sho gaya..jeevan nashe me kho gaya..kaisha abhaga bap tha..ghar ke liye abhishap tha ..yaha shoch kar karana nasha..eshee hi hogee durdasha..